मदर टेरेसा के पंथ की परिणति ऐसी भयावह ही होनी थी

मदर टेरेसा के गैर सरकारी संगठन, मिशनरीज ऑफ चैरिटी के बाल तस्करी संबंधी अवैध व्यापार पर एक टिपण्णी
मदर टेरेसा के पंथ की परिणति ऐसी भयावह ही होनी थी
Published on
10 min read

Read this article in English

Also Read
The Cult of Mother Teresa had to Obviously Culminate in this Horror

इसका कितना महत्व है इससे परे, घिनौनी नैतिकता और आध्यात्मिक गंदगी के नाम से चलने वाले मिशनरीज ऑफ चैरिटीका उपरी आवरण स्थायी रूप से उड़ चुका है। जो लोग दुनिया भर में चल रही चर्च की गतिविधियों पर दृष्टि रखते हैं, उनके लिए इसमें आश्चर्य की कोई बात थी ही नही। किंतु इसके बाद भी जब ऐसे नए नए उदाहरण सामने आते हैं, तो मेरा आंतरिक दर्द कदाचित ही कम होता है।

यह रहा नवीनतम रहस्योद्धाटन :

मदर टेरेसा द्वारा स्थापित मिशनरीज ऑफ चैरिटी के लिए नवजात शिशुओं को बेचना सदा से एक सामान्य मामला रहा है। यद्यपि 2014 के पश्चात बाल तस्करी और पैसा उगाही की अनगिनत शिकायतों के कारण यह विवाद अब ज्यादा बाहर आने लगा है।

रांची स्थित मिशनरीज ऑफ चैरिटी के केंद्रों में बाल-तस्करी का यह व्यापार बड़े ही नियोजित तरीके से स्थानीय पुलिस की नाक के नीचे पनप रहा था।

अब तो मुझे भी स्मरण नहीं है कि मैंने कितनी बार मदर टेरेसा के इस भयावह पंथ के बारे में लिखा है, किंतु कुछ और नहीं तो मात्र एक पुनरुक्ति, निरंतरता और स्थाई चेतावनी के रूप में ही क्यों न हो, उनकी इस कथा को बारंबार लिखा जाना चाहिए, यह बताने के लिए कि ईसाई साधुता की जड़ों में कितनी अनकही बर्बरता छिपी हुयी है।

वास्तव में मैल्कम मुगरिज के बिना, जिसे कि क्रिस्टोफर हिचेन्स ‘एक बूढ़ा ठग और नीम हकीम’ कहते हैं, ना तो मै इस लेख को लिखता ना ही क्रिस्टोफर हिचेन्स द्वारा अपनी दिल दहला देने वाली पुस्तक‘द मिशनरी पोजिशन’लिखने की यातना ली जाती जोकि शायद मदर टेरेसा को सर्वोत्तम तरीके से उघड़ा करदेती है।

3 वर्ष पूर्व आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने सार्वजनिक रूप से यह दावा किया था कि टेरेसा की सेवाएं, जिन की सेवा की गई है उनका ईसाइयत में धर्मांतरण करने की नीयत से की गई सेवा है। यद्यपि यह सत्य है, किंतु फिर भी मोहन भागवत का कथन तुलनात्मक रूप से बहुत अधिक सीधा और सरल है। जो कुछ टेरेसा कर रही थी, वह तो किसी भी अर्थ में सेवा थी ही नहीं - उन्होंने तो अपना सारा जीवन दरिद्रों, रुग्णों और मृतक आत्माओं की फसल काटकर उन्हें अपने एकमेव उद्देश ‘जीसस के साथ एकत्व” में लगा दिया था।

Also Read
भारत को उपनिवेश बनाने के वेटिकन के उद्देश्य को टेरेसा द्वारा कैसे दृढता दी गयी

मैं कह सकता था कि क्रिस्टोफर हिचेन्ससुकरात के इस आदर्श के साथ टेरेसा की जांच में बाहर निकले कि “ऐसा कोई भी जीवन जिसका परीक्षण नहीं हुआ हो, अनुकरणीय नहीं है”, किंतु यह एक स्पष्ट अतिशयोक्ति होगी। मैं केवल इतना ही कहूंगा कि वे प्रवाह के विरुद्ध तैरे और वे मदर टेरेसा के परीक्षण में आगे निकल गए।जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने इसी“संत वृद्ध महिला” को ही क्यों चुना, तो वे कहते हैं :

आंशिक रूप से तो इसलिए कि उनका प्रभाव बहुत विस्तृत है, हाँ, इसलिए भी कि उन्हें प्रश्नों से परे माना जाता है। हम इस बात का विरोध करते हैं,जिसे सीधे सरल विश्वास की समस्या कहा जाता है। वे लोग, जोकि सामान्यतः सोचने की शक्ति रखते है, उनके द्वारा भी मदर टेरेसा को बिना किसी जाँच परख के संत के रूप में मान लेना, लोगों का किसी भी ऐसी बात में जोकि पवित्रता के परिधान में आवेष्ठित है,उस पर विश्वास कर लेने का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है।दूसरे शब्दों में कहूँ तो यह हर एक अर्थ में बिना जांचागया दावा है। यह पत्रकारिता की दृष्टि से भी जांचा नहीं गया है। वास्तव में कोई इसका निरीक्षण नहीं करता कि वे करती क्या है। और ना ही इस बात की समीक्षा होती है कि उन्हें ही इतना सार्वजनिक चर्चा में क्यों रखा जाना चाहिए, जबकि अनेक निस्वार्थ व्यक्तियों ने अपनी पूरी जिदंगी,हम जिसे तीसरी दुनिया कहते है, वहाँ की यातनाओं से मुक्ति देने में खपा दी है।

कहानियों की तुलना में मिथक काफी चिरस्थायी होते हैं, भले वे काल्पनिक मिथक हो या लोक-मिथक, क्योंकि वे हमसें बड़ी मात्रा में हमारे संदेह के स्वैच्छिक निलंबन की अपेक्षा रखते हैं। जहां काल्पनिक मिथक को मिथक के रूप में ही मान लिया जाता है, लोक-मिथक इससे बिल्कुल विपरीत होते हैं। वे तो जैसे सत्य का स्तर ही हासिल कर लेते हैं। और इसीलिए जब किसी लोक-मिथक पर सूर्य की पहली किरण का स्पर्श होता है, लोग चकित, आवेशित और असहनशील से हो जाते हैं। आप कितने ही साक्ष्य उनके सामने रख दो, लोक-मिथकों में विश्वास करनेवाले हो या कोई सामान्य व्यक्ति, वे समान रूप से सच्चाई को अस्वीकार कर देते हैं। यह मानवीय मस्तिष्क का एक बहुत बड़ा सत्य और भीषण शक्ति है कि जनता सबसे बुरे लोकमिथकों के भी बचाव में खड़ी हो जाती है, उसे पचाना चाहती हैं। और चर्च ने अपने 800 सालों के संकलित अनुभव के बल पर समाज की इस निर्बलता का पूरे कौशल्य और पारंगतता के साथ सदा उपयोग किया है।

Pope John Paul II
Pope John Paul II

यही कारण है किहिचेन्सकी टेरेसा“मदर” मिथक के रहस्योद्घाटन को विशेष रूप से भारत में सार्वजनिक चर्चा का विषय नहीं बनाया गया; वहीं विदेश में, पश्चिमी देशों में उनके बारे में एक ऐसा उपरी प्रभाव है कि वे कोई बड़ी पुण्यात्मा तपस्विनी है, जो तीसरे विश्व के देशों के दरिद्रों, रुग्णों और मरने जा रहे लोगों की सेवा में रत थी। इसी कारण से डॉ अरूप चटर्जी की “मदर टेरेसा द फाइनल वर्डिक्ट”एक लंबे समय तक बाजार में बड़े पैमाने पर अनुपलब्ध रही है। यही कारण है कि लोगों ने एक विद्वत्तापूर्ण लेखन जैसे कि “मदर टेरेसा- कम बी माय लाइट- द प्राइवेट राइटिंग ऑफ द “सेंट ऑफ कोलकाता”के बारे में कभी सुना ही नहीं है। बिना किसी कठोर चिकित्सा के किसी के लिए भी यह अधिक आसान और सुविधा पूर्ण है कि वह दानपुण्य, सेवा, दरिद्रता, यातना, भगवान और संतो जैसी महत्वपूर्ण धारणाओं को सुनिश्चित मान लें एवं अपने व्यक्तिगत विश्वासों और आस्थाओं को बाहरी स्त्रोत से ले लें।

Also Read
How the Vatican’s Mission to Colonise Bharatavarsha was Strengthened by Teresa

मैं बहुचर्चित पुस्तक “हेल्स एंजल- टेरेसा” के भद्दे पहलुओं में विस्तार में नहीं जाना चाहूंगा क्योंकि वह पहले ही सर्वश्रुत और पूर्णतः प्रलेखित है। उदा. हैती के ड्यूवलियर्स के अत्याचारों का समर्थन हो या लिंकन सेविंग्स एंड लोन अथवा चार्ल्स कीटिंग की औद्योगिक स्तर की ठगी में सहायता करना, याकि कोलकाता में उनके आवास पर क्रूर "उपचार सुविधाओं" का विषय हो अथवा उनका मृतक "राजकुमारी" डायना के तलाक के संबंध में दोहरा मापदंड।

भारत को मदर टेरेसा का जो एकमेव योगदान है, वह यह है कि उन्होंने खुले तौर पर कोलकातामहानगर को तीसरे विश्व और भारत के एक घिनौने और गंदे दुर्गन्धयुक्तनगर के रूप में प्रचारित किया, जो छबि पश्चिमी विश्व में सदा के लिए इस महानगर के साथ चस्पा हो चुकी है। इस साक्षात्कार के अंश- प्रश्न और उन पर हिचेन्सके उत्तर,इसे पूर्णतः स्पष्ट करते हैं। यदि आप भारतीय है तो यह आपके लिए अत्यंत दुखदायी है।

टिपण्णी: साक्षात्कार शब्दांकन में कुछ स्थानों को मैंने अपनी ओर प्रभावोत्पादक किया है।

प्रश्न:मदर टेरेसा मिथक भारतीयों के लिए सदा एक असहाय पीड़ित की छबि में बने रहना अनिवार्य कर देता है। मदर टेरेसा के बारे में भारतीय क्या सोचते हैं और वे स्वयं भारत की कौनसी छबि निर्मित करती है?

हिचेन्स: भारत में, जहां मेरी पुस्तक प्रकाशित हुई, मुझे मीडिया में भरपूर स्थान मिला। और जो समीक्षाएं थी, वे भी अत्यधिक अनुकूल थी। ऐसे बहुत से भारतीय थे, जिन्हें उनके समाज और उनके लोगों की प्रतिमा को जिस ढंग से प्रस्तुत गया है, उससे आपत्ति थी। मदर टेरेसा से और उनके समर्थक समर्थकों से आपको एक ऐसी छबि मिलती हैं कि मानो कोलकाता में आलस्य, गंदगी और दुखों के अलावा कुछ और है ही नहीं और लोगों में इतनी शक्ति भी नहीं है कि वे भीख का कटोरा आगे बढ़ाते समय अपने आंखों के ऊपर मडंरा रही मक्खी भी उड़ा सकें। जबकि वास्तविकता और सच्चाई में तो यह है कि यह एक अत्यंतविलक्षण रोचक, साहस से भरपूर, अत्यधिक विकसित सुसंस्कृत शहर की झूठी निंदा है, जहां विश्वविद्यालय, फिल्म स्कूल्स, नाटक शालाएं, पुस्तकों की दुकानें और साहित्यिक कैफ़े भरे पड़े हो।निश्चित ही वहां गरीबी और भीड़भाड़ की समस्या है, किन्तु इसके बाद भी वहाँ उतनी दरिद्रता नहीं है। लोग आपकी बाहें खींच कर आपसे भीख नहीं मांगते हैं। उन्हें इस बात का गर्व है कि वे ऐसा नहीं करते हैं।कोलकाता के दुखों और समस्याओं का मूल उसकी ज्यादा जनसंख्या में है, जो कि चर्च कहता है कि वह कोई समस्या ही नहीं है।

यह दावा करना कतई असत्य नहीं है कि टेरेसा दरिद्रता के प्रति नहीं बल्कि दरिद्रों के प्रति, मरने जा रहे व्यक्तियों के प्रति आकर्षित थी। इस बात की पूरी व्यवस्था थी कि वे सदा दरिद्र औरभूखें रहें और यदि वे रुग्ण हो और मरने जा रहे हो, तो यह तो जैसे वास्तव में उन्हें रास्ते में मिला प्रभु का उपहार ही हो । प्रभु को प्रेषित आत्माओं की गिनती में एक और सोपान, उनकीजीसस के साथ एकत्व”की यात्रा का एक और चरण। निश्चित ही आत्मा परपीड़न की इसी पहेली के कारण उनकी दीन उपस्थिति और पवित्रता का प्रभामंडल उनके पुण्यात्मा उद्धारकर्ता के आवरण के साथ संपूर्ण जीवन छिपा रहा।

टेरेसा केकोलकाता स्थित निवास पर वास्तविक जीवन में किसतरह इनकी योजना बनाई जाती थी, इसके एकाध ह्रदय विदारक दृष्टांत को जानना हो तोटेरेसा के यहाँ एक दशक तक नन के रूप में काम कर चुकी सुसान शील्ड्स की साक्ष्य और जर्मनी की पत्रिका स्टर्न द्वारा रिकार्ड किये गए लोगों के व्यक्तिगत अनुभव पढ़ लीजिए। यह वाचन हमें क्षुब्ध कर देता है।

जीसस के साथ एकत्व”के अलावा और ऐसा क्या होगा कि जिसने टेरेसा को ऐसे आत्मा परपीड़न और अन्य प्रकार केघोषितअनैतिक कार्यों के लिए प्रेरित किया होगा? हिचेंसहमें बताते हैं :

क्यों इस बात की चर्चा नहीं होती कि उनके काम का घोषित उद्देश्य धार्मिक कट्टरता के लिए धर्मांतरण करना था और वह भी कैथोलिक सिद्धांतों की सबसे चरम रूढ़िवादी व्याख्या के लिए? कि वे भारत और कई अनेक देशों में सक्रिय अत्यंत प्रतिक्रियावादी तत्वों की सहयोगीरह चुकी हैं? कि वे आयरलैंड को यूरोप में तलाक पर संवैधानिक प्रतिबंध वालादेश बने ना रहने देने से रोकने के लिए प्रचार अभियान चला चुकी थी? कि सदाउनके हस्तक्षेप का समय घोर रूढ़िवादी और प्रतिगामी शक्तियों को सहयोग करने के लिये ही चुना जाता था?

यह सभी को ज्ञात है की ईसाई धर्मप्रचार का वैश्विक उद्योग धर्मांतरण के लिए अलग-अलग स्तरों पर अलग-अलग तकनीकों का उपयोग करता ही है। दबाव, धोखा, लालच आदि का उपयोग करके धर्मांतरण तो किया ही जाता है, किंतु यह तो हर अर्थ में एक रुग्णता है कि आप दुर्बल, घातक रूप से रुग्ण, बचाव रहित और मरने जा रहे लोगों का धर्मांतरण कर लें। किंतु यही तो टेरेसा की विशेषज्ञता का क्षेत्र था और विश्व भर में फैले उनके पन्थ के बैंक खातों में जमा करोड़ों डॉलर यही दर्शाते हैं कि उन्होंने इसमें पारंगतता हासिल कर ली थी। वह कौन सी मानसिकता होगी जो किसी व्यक्ति से ऐसे शब्द कहलाती होगी जो कि टेरेसा द्वारा एक यातना भुगत रहे व्यक्ति से उनके आवास पर कहे गए थे:

Also Read
How Christian Missionaries Use Dalits as Canon-Fodder for Anti-Hindu Propaganda

मदर टेरेसा ने कहा था, "किसी भी व्यक्ति के लिए सबसे बड़ा पुरस्कार यही है कि वह जीसस की पीड़ा में सम्मिलित हो सके।“ एक बार दर्द से करार रहे एक पीड़ित को उन्होंने सांत्वना देने का प्रयास करते हुए कहा, “तुम्हें यातना हो रही है, इसका अर्थ है कि जीसस तुम्हें चूम रहे हैं।"पीड़ित ने कराहते हुए आवेश में आकर कहा, “फिर अपने जीसस से कहिए कि वह मुझे चूमना बंद करें”। (प्रभावोत्पादकता अपनी ओर से)

उनकी यही अति उत्साही कट्टरता वेटिकन बैंक सहित दुनिया भर के अलग-अलग स्थानों पर छिपाकर रखे गए टेरेसा के करोड़ों रुपयोंकी सच्चाई हमें बताती हैं जो दरिद्रों की सहायता हेतु दान में प्राप्त की गयी थी। अति उत्साही कट्टरता इसलिए भी क्योंकि उन्होंने इस राशि का अंश मात्र भी कभी गरीबों की वास्तविक सहायता में प्रयुक्त नहीं किया था। उत्साहपूर्ण कट्टरता इसलिए भी कि उन्होंने इसका बड़ा अंश ना तो अपने स्वयं के ऊपर खर्च किया और ना ही उनके मिशनरीज के विश्वव्यापी पंथ के जाल पर ही कोई खर्च किया। यह तथ्यकि उनका मिशनरीज आफ चैरिटी कैथोलिक चर्च की सबसे सफलतम शाखा है और सबसे बड़ा दानदाता है, हमें दरिद्रों की सहायता, यातनाओं और मर रहे लोगों के बारे में बहुत कुछ बता देता है। यहां यह भी स्मरणीय है कि इस पूरी रकम का कहीं कोई हिसाब किताब नहीं है।

उनकी साधुता और उनसे जोड़ दिए गए अन्य सद्गुणों को नकारने वाले साक्ष्यों के ढेर होने के बाद भीक्रिस्टोफर हिचेन्स सीधे सरल विश्वास की समस्या कहते है उसके कारण, लोग बिलकुल विरुद्ध धुरी में ही निरंतर विश्वास करते रहे हैं। अल्प जानकारियों वाली सौंदर्य स्पर्धा की प्रतियोगी से लेकर अनभिज्ञ अभिनेता चिरंजीवी तक, भारत सरकार द्वारा उन्हें प्रदान किये गए भारत रत्न सम्मान से लेकर नोबेल पुरस्कार तक, मदर टेरेसा का धार्मिक पंथ पिछली शताब्दी में वैश्विक स्तर पर हुयी धार्मिक लूटपाट के सबसे सफलतम उदाहरणों में से एक है।

यद्यपि यह अनुचित है किंतु आश्चर्यजनक सत्य है कि लोग टेरेसा के शब्दों को उनके दर्शनी मूल्य से नहीं लेते हैं। ऐसा क्यों है कि मुख्यधारा के बहुत से आलोचक, लेखक और सुधिजन उनकी ओर से बहाने करते हैं या क्षमा याचना करते हैं जबकि वे स्वयं अनेक गंभीर प्रश्नों पर अपनी कट्टरता को लेकर स्पष्टवादी रही है? इंडिया टुडे की 31 मई 1983 की आवृत्ति में प्रकाशित उनके साक्षात्कार के कुछ अंश निम्नलिखित है:-

प्रश्न: एक ईसाई मिशनरी के रूप में क्या आप ईसाई गरीब और दूसरे गरीबों के बीच में निष्पक्षता बनाए रखती है?

उत्तर: मैं निष्पक्ष नहीं हूं। मेरे पास अपनी आस्था है।

प्रश्न: क्या चर्च कोई गलती कर सकता है?

उत्तर: तब तक नहीं, जब तक वह ईश्वर के पक्ष में खड़ा है।

प्रश्न: मदर, यदि आप मध्य युग में जन्म लेती और गैलीलियो की न्यायिक पूछताछ के समय आप को किसी का पक्ष लेने को कहा जाता, तो आप किसका पक्ष लेती, चर्च का या आधुनिक खगोल विज्ञान का?

उत्तर: (मुस्कुराते हुए) चर्च का।

कुछ ऐसा ही उन्होंने 1988 में स्टर्न मैगजीन को कहा था: "हम यहां काम करने के लिए नहीं है, हम यहां जीसस के लिए हैं। सभी बातों से उपर हम धार्मिक हैं। हम समाजसेवी नहीं है, शिक्षक नहीं है, चिकित्सक नहीं है। हम तपस्विनी (नन) है।" उनके बाहरी आवरण तथा वे एक बहुत ही सादा जीवन जीती है और दरिद्रों के बीच कार्य करती हैं, इस अनुचित जादुई मानसिक छबि की आड़ में ना जाते हुए, क्यों नहम उन्हें उनके ही शब्दों में स्वीकार करते हुए उनकी विरासत की समीक्षा करें?

Also Read
This Attitude of Nehru's Government has Inspired Christian Missionaries with Confidence in the Indian Constitution: A Jesuit Speaks Out

टेरेसा के पास इन सबसे परे मानवीय प्रकृति में झाँकने की एक गहन अंतर्दृष्टि थी। हिचेन्स और अरूप चटर्जी की पुस्तकों से और उन्हें आत्माओं के हृदयहीन लुटेरे के रूप में बाहर लानेवाले सभी प्रकार के रहस्योद्घाटनों के ढेर से भी वे सदा अविचलित बनी रही। उनकी इस अंतर्दृष्टि का सबसे स्थायी दृष्टांत तो यही है कि वे “जीसस के साथ एकत्व” की अपनी घोर धर्मांध यात्रा में बाद में भी व्यस्त रही।

यदि आज उनके संप्रदाय मिशनरीज ऑफ चैरिटी का आवास बिना किसी भय के नवजात शिशुओं को बेचने के काम में लगा हुआ है, तो इसकी जड़ें बहुत पहले ही गहराई और विस्तार से फैला दी गयी थी।

चलो, कुछ तो प्रभु के लिए सुंदर है ही।

The Dharma Dispatch is now available on Telegram! For original and insightful narratives on Indian Culture and History, subscribe to us on Telegram.

logo
The Dharma Dispatch
www.dharmadispatch.in